शेयर और डिबेंचर के बीच अंतर

शेयर कंपनी की स्वामित्व वाली पूंजी (इक्विटी) का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका अर्थ है कि वे कंपनी में स्वामित्व को दर्शाते हैं, जबकि डिबेंचर उधार ली गई पूंजी माना जाता है, मुख्य रूप से कंपनी द्वारा निवेशकों से लिया जाने वाला लोन.
शेयर और डिबेंचर के बीच अंतर
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28 जनवरी, 2025

शेयर और डिबेंचर ऐसे आम तरीके हैं, जिनका इस्तेमाल कंपनियां पूंजी जुटाने के लिए करती हैं. शेयर. स्वामित्व की एक इकाई होती है, जो कंपनी की पूंजी के अनुपात को बताती है, जबकि डिबेंचर, डेट इंस्ट्रूमेंट होते हैं, जिनका उपयोग उधार लिए गए पैसे जुटाने के लिए किया जाता है. शेयर, इक्विटी की पूंजी को दर्शाते हैं, जबकि डिबेंचर, उधार ली गई पूंजी को दर्शाते हैं.. इस आर्टिकल का उद्देश्य यह है कि आपको शेयर और डिबेंचर, उनके प्रकार और उनके बीच मुख्य अंतर के बारे में अच्छे से समझाया जा सके. इन अंतरों को समझना निवेशकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, ताकि वे अपने फाइनेंशियल लक्ष्यों और जोखिम लेने की क्षमता के आधार पर सही निर्णय ले सकें.

कंपनी अपनी पूंजी आवश्यकताओं के लिए फंड कैसे जुटाती है?

भारतीय सिक्योरिटीज़ मार्केट में, कंपनियां इक्विटी इंस्ट्रूमेंट और डेट इंस्ट्रूमेंट के माध्यम से अपनी पूंजी से जुड़ी ज़रूरतों के लिए फंड जुटा सकती हैं.

1. इक्विटी इंस्ट्रूमेंट:

इक्विटी इंस्ट्रूमेंट किसी कंपनी में स्वामित्व का प्रतिनिधित्व करते हैं. जब कोई कंपनी स्टॉक या शेयर जैसे इक्विटी इंस्ट्रूमेंट जारी करती है, तो यह पूंजी के बदले निवेशकों को मालिकाना हक बेचती है. इन स्टॉक को खरीदने वाले इन्वेस्टर कंपनी के आंशिक मालिक बन जाते हैं और उन्हें डिविडेंड प्राप्त हो सकते हैं और शेयरधारक की मीटिंग में वोटिंग का अधिकार हो सकता है. भारत में, कंपनियां नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) जैसे स्टॉक एक्सचेंज पर इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) या फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफरिंग (एफपीओ) के माध्यम से इक्विटी इंस्ट्रूमेंट जारी कर सकती हैं.

2. डेट इंस्ट्रूमेंट:

डेट इंस्ट्रूमेंट, निवेशकों द्वारा कंपनी को दिए गए लोन को दर्शाते हैं. जब कोई कंपनी, बॉन्ड या डिबेंचर जैसे डेट इंस्ट्रूमेंट जारी करती है, तो इसमें समय-समय पर ब्याज का भुगतान करने के साथ-साथ मूलधन की राशि का पुनर्भुगतान करने के वादे के साथ निवेशकों से पैसे उधार लिया जाता है. इक्विटी होल्डर के विपरीत, डेट होल्डर के पास कंपनी में स्वामित्व से जुड़ा कोई अधिकार नहीं होता है, लेकिन दिवालिया होने के मामले में उनके पास कंपनी के एसेट पर सबसे ज़्यादा क्लेम होता है. भारत की कंपनियां, पब्लिक इशू या प्राइवेट प्लेसमेंट के माध्यम से डेट इंस्ट्रूमेंट जारी कर सकती हैं और उन्हें स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट किया जा सकता है या फिर ओवर-द-काउंटर (OTC) में ट्रेड किया जा सकता है.

इक्विटी और डेट इंस्ट्रूमेंट, ये दोनों ही कंपनियों को पूंजी जुटाने के लिए अलग-अलग तरीके उपलब्ध कराते हैं और हर तरीके के अपने फायदे होते हैं, साथ ही कुछ ध्यान रखने योग्य बातें भी होती हैं. कंपनियां अक्सर इक्विटी और डेट इंस्ट्रूमेंट का कॉम्बिनेशन चुनती हैं, जो उनकी पूंजी की संरचना, बढ़ोत्तरी की संभावनाओं, जोखिम लेने की क्षमता और मार्केट की मौजूदा स्थितियों जैसे कारकों पर आधारित होता है.

डिबेंचर क्या हैं?

डिबेंचर डेट इंस्ट्रूमेंट हैं, जहां इन्वेस्टर कंपनी को पैसे उधार देते हैं और फिक्स्ड ब्याज भुगतान प्राप्त करते हैं.

जब कोई व्यक्ति डिबेंचर में निवेश करता है, तो वह जारीकर्ता कंपनी को पैसे उधार देता है और क्रेडिटर (लेनदार) बन जाता है. कंपनी पहले से तय ब्याज दर पर समय-समय पर ब्याज भुगतान के साथ मूलधन राशि का पुनर्भुगतान करने का वादा करती है, जिसे कूपन भुगतान भी कहा जाता है.

डिबेंचर के प्रकार

आइए विभिन्न प्रकार के डिबेंचर के बारे में जानें:

  1. परिवर्तनीय डिबेंचर: ये डिबेंचर एक निर्दिष्ट अवधि के बाद जारीकर्ता कंपनी के इक्विटी शेयरों में परिवर्तित किए जा सकते हैं, जिससे इन्वेस्टर को कंपनी के स्वामित्व में भाग लेने की अनुमति मिलती है.
  2. नॉन-कन्वर्टिबल डिबेंचर: नॉन-कन्वर्टिबल डिबेंचर को इक्विटी शेयरों में बदला नहीं जा सकता है और मेच्योरिटी तक फिक्स्ड ब्याज दरें प्रदान नहीं किया जा सकता है.
  3. सिक्योर्ड डिबेंचर: इन डिबेंचर में कोलैटरल के रूप में कंपनी के विशिष्ट एसेट रखे जाते हैं. डिफॉल्ट के मामले में, डिबेंचर होल्डर के पास अंडरलाइंग एसेट पर क्लेम होता है, जिससे निवेशकों को अपनी पूंजी के लिए अतिरिक्त सुरक्षा मिलती है.
  4. अनसिक्योर्ड डिबेंचर: इन्हें "नेक्ड डिबेंचर" भी कहा जाता है, क्योंकि इनमें कोई विशिष्ट कोलैटरल नहीं होता है. इन्हें कंपनी की क्रेडिट योग्यता और उधार लिए गए पैसे चुकाने की क्षमता के आधार पर जारी किया जाता है. इन डिबेंचर में कोलैटरल नहीं होता है, इसलिए आमतौर पर अनसिक्योर्ड डिबेंचर में अधिक जोखिम की भरपाई करने के लिए सिक्योर्ड डिबेंचर की तुलना में अधिक ब्याज दरें ऑफर की जाती हैं.
  5. फिक्स्ड-रेट डिबेंचर: इन डिबेंचर की पूरी अवधि के दौरान एक निश्चित ब्याज दर रखी जाती है. ब्याज का भुगतान स्थिर रहता है, जिससे निवेशकों को अनुमानित रिटर्न मिलता है.
  6. फ्लोटिंग रेट डिबेंचर: इन डिबेंचर पर ब्याज दर, बेंचमार्क ब्याज दर (जैसे सरकारी बॉन्ड दर) या मार्केट इंडेक्स के आधार पर कम-ज़्यादा होती रहती है. जैसे-जैसे ब्याज दरें बदलती हैं, फ्लोटिंग रेट डिबेंचर पर कूपन दर उसके अनुसार एडजस्ट होती जाती है.
  7. पर्पेचुअल डिबेंचर: पर्पेचुअल डिबेंचर की मेच्योरिटी की कोई निश्चित तारीख नहीं होती है, इसका मतलब है कि इनके पुनर्भुगतान की कोई तय अवधि नहीं होती है. जारीकर्ता, डिबेंचर को रिडीम करने का निर्णय लेने तक अनिश्चित समय तक ब्याज का भुगतान करता है. हालांकि एक निश्चित अवधि के बाद जारीकर्ता के लिए विशिष्ट कॉल या रिडेम्प्शन के विकल्प उपलब्ध कराए जा सकते हैं.
  8. कॉलेबल डिबेंचर: कॉलेबल डिबेंचर, जारीकर्ता को डिबेंचर की मेच्योरिटी की तय तारीख से पहले उन्हें रिडीम करने का विकल्प प्रदान करते हैं. अगर ब्याज दरें कम हो जाती हैं, तो इस विकल्प से जारीकर्ता को लाभ मिलता है, क्योंकि वे डिबेंचर को वापस खरीद सकते हैं और कम ब्याज दर पर नए डिबेंचर को दोबारा जारी कर सकते हैं.
  9. पुटेबल डिबेंचर: पुटेबल डिबेंचर में निवेशकों को पूर्वनिर्धारित कीमत पर मेच्योरिटी से पहले जारीकर्ता को डिबेंचर वापस बेचने का विकल्प मिलता है. अगर निवेशक, मेच्योरिटी की तय तारीख से पहले अपने निवेश का मूल्यांकन करना चाहते हैं, तो इस सुविधा से उनको लाभ मिलता है.
  10. ज़ीरो कूपन डिबेंचर: ये डिबेंचर, ट्रेडिशनल डिबेंचर की तरह नियमित रूप से ब्याज का भुगतान नहीं करते हैं. इसके बजाय, उन्हें उनकी फेस वैल्यू पर डिस्काउंट के साथ जारी किया जाता है और मेच्योरिटी पर फेस वैल्यू के हिसाब से रिडीम किया जा सकता है, इससे निवेशकों पूंजी में होने वाली बढ़त के रूप में ब्याज मिल जाता है

शेयर क्या हैं?

शेयर, जिसे स्टॉक या इक्विटी भी कहा जाता है, कंपनी में स्वामित्व का प्रतिनिधित्व करता है. जब आप शेयरों में निवेश करते हैं, तो आप शेयरहोल्डर बन जाते हैं और कंपनी के स्वामित्व और भविष्य के लाभ में आनुपातिक हिस्सेदारी प्राप्त करते हैं. शेयरधारक कॉर्पोरेट निर्णयों में डिविडेंड, कैपिटल एप्रिसिएशन और वोटिंग अधिकारों से लाभ उठा सकते हैं. आप बजाज फाइनेंशियल सिक्योरिटीज़ लिमिटेड के साथ मुफ्त डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट खोलकर शेयरों में इन्वेस्ट करना शुरू कर सकते हैं.

शेयर के प्रकार

नीचे दिए गए विभिन्न प्रकार के शेयर देखें:

  1. कॉमन शेयर: कॉमन शेयर सबसे प्रचलित शेयर हैं और इनमें शेयरधारकों को कंपनी में स्वामित्व मिलता है. इनमें वोटिंग के अधिकार मिलते हैं, जिससे शेयरहोल्डर प्रमुख निर्णयों में और निदेशक मंडल के चुनाव में भाग ले सकते हैं. अगर कंपनी अपने शेयरहोल्डर को लाभ बांटती है, तो सामान्य शेयरहोल्डर भी लाभांश प्राप्त करने के हकदार होते हैं.
  2. प्रिफरेंस शेयर: प्रिफरेंस शेयर का डिविडेंड और पूंजी के पुनर्भुगतान पर सबसे पहला क्लेम या अधिकार होता है. आम शेयरहोल्डर को कोई भी डिविडेंड मिलने से पहले प्रिफर्ड शेयर वाले शेयरहोल्डर को निर्दिष्ट दर पर फिक्स्ड डिविडेंड मिलते हैं. लिक्विडेशन की स्थिति में, प्रिफर्ड शेयरहोल्डर को कंपनी की एसेट का शेयर प्राप्त करने के लिए भी प्राथमिकता दी जाती है.
  3. ऑर्डिनरी शेयर: "ऑर्डिनरी शेयर" शब्द का उपयोग अक्सर कॉमन शेयरों के लिए भी किया जाता है. ये शेयर बताते हैं कि कंपनी में आपकी बेसिक स्वामित्व वाली कितनी यूनिट हैं और वोटिंग के अधिकार के साथ-साथ संभावित डिविडेंड (लाभांश) भी ऑफर करते हैं.
  4. नॉन-वोटिंग शेयर: कुछ कंपनियां नॉन-वोटिंग शेयर जारी करती हैं, जिनमें कंपनी के निर्णय लेने के प्रोसेस में वोटिंग करने से जुड़े कोई अधिकार नहीं दिए जाते हैं. हालांकि नॉन-वोटिंग शेयरहोल्डर का कंपनी में स्वामित्व तो होता है, लेकिन वे कंपनी के महत्वपूर्ण मामलों में वोटिंग नहीं कर सकते हैं.
  5. ड्यूल-क्लास शेयर: कुछ मामलों में, किसी कंपनी के अलग-अलग क्लास के शेयर हो सकते हैं, जिनमें वोटिंग से जुड़े अधिकार भी अलग-अलग हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, क्लास A शेयर में क्लास B शेयर की तुलना में प्रति शेयर, वोटिंग के लिए ज़्यादा अधिकार हो सकते हैं. ड्युअल क्लास शेयर स्ट्रक्चर का इस्तेमाल अक्सर, फाउंडर और इनसाइडर द्वारा किया जाता है, ताकि वे पब्लिक निवेशकों से पूंजी जुटाने के साथ-साथ कंपनी पर पूरा नियंत्रण भी रख सकें.
  6. रिडीमेबल शेयर: रिडीम करने योग्य शेयर को कंपनी द्वारा एक विशिष्ट समय पर या शेयरहोल्डर के विकल्प पर दोबारा खरीदा जा सकता है. रिडेम्प्शन की शर्तें पहले से तय होती हैं और कंपनी में कानूनों में बताई जाती हैं.
  7. संचयी वरीयता शेयर: संचयी वरीयता शेयर यह सुनिश्चित करते हैं कि अगर कंपनी किसी भी वर्ष में डिविडेंड का भुगतान करती है, तो भुगतान न किए गए डिविडेंड जमा होते हैं और भविष्य में किसी भी डिविडेंड का भुगतान आम शेयरधारकों को करने से पहले किया जाना चाहिए.

शेयर और डिबेंचर के बीच अंतर

डिबेंचर्स

शेयर

डिबेंचर, एक कंपनी द्वारा जारी किया जाने वाला डेट इंस्ट्रूमेंट है, जो आमतौर पर दीर्घकालिक उद्देश्यों के लिए जारी किया जाता है. यह किसी भी एसेट या सिक्योरिटी द्वारा समर्थित नहीं है, और लोनदाता को उस पर भुगतान किए गए ब्याज से एक निश्चित आय प्राप्त होती है.

शेयर किसी कंपनी में स्वामित्व की हिस्सेदारी का प्रतिनिधित्व करता है और कंपनी द्वारा घोषित किए जाने पर धारक को लाभांश का हकदार बनाता है. शेयरधारक शेयरहोल्डर मीटिंग में वोट करने का हकदार होते हैं और बोनस जैसे अन्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं.

डिबेंचर आमतौर पर अनसिक्योर्ड होते हैं और इनमें लॉन्ग-टर्म मेच्योरिटी तिथि हो सकती है. परिणामस्वरूप, डिबेंचर की ब्याज दर आमतौर पर शेयरों से कम होती है.

स्टॉक एक्सचेंज पर शेयर खरीदे और बेचे जा सकते हैं, जिससे इन्वेस्टर को लिक्विडिटी मिलती है. शेयर की कीमत मार्केट की मांग और सप्लाई के अनुसार उतार-चढ़ाव करती है. शेयरों से रिटर्न डिबेंचर से अधिक है और फिक्स्ड नहीं है.

डिबेंचर को आमतौर पर शेयरों की तुलना में सुरक्षित इन्वेस्टमेंट माना जाता है क्योंकि वे निश्चित आय प्रदान करते हैं, और पूंजी हानि का कोई जोखिम नहीं होता है.

शेयर निवेश पर अधिक रिटर्न प्रदान कर सकते हैं. लेकिन, वे अधिक जोखिम के साथ भी आते हैं क्योंकि वे कीमत में मार्केट के उतार-चढ़ाव के अधीन हैं.

शेयरों को डिबेंचर में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है

डिबेंचर धारक अपनी सिक्योरिटीज़ को शेयरों में बदल सकते हैं.

जब जनता को डिबेंचर प्रदान किए जाते हैं, तो उन्हें प्रभावी बनाने के लिए एक ट्रस्ट डीड को निष्पादित किया जाना चाहिए.

शेयरों में डील करते समय ट्रस्ट डीड को निष्पादित करना आवश्यक नहीं है.


यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कंपनी और उसके आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन के आधार पर इक्विटी और प्रिफरेंस शेयर की विशिष्ट विशेषताएं और अधिकार अलग-अलग हो सकते हैं. इसलिए, किसी भी प्रकार के शेयर में निवेश करने से पहले कंपनी के शेयर स्ट्रक्चर और संबंधित अधिकारों को सावधानीपूर्वक समझ लेने की सलाह दी जाती है.

शेयर बनाम डिबेंचर - इनमें से निवेश का बेहतर विकल्प कौन सा है?

शेयर और डिबेंचर के बीच किसी एक को चुनना जोखिम लेने की क्षमता, निवेश के लक्ष्य और मार्केट की स्थितियों सहित कई कारकों पर निर्भर करता है. शेयर में पूंजी में होने वाली बढ़त और डिविडेंड के माध्यम से उच्च रिटर्न मिल सकता है, लेकिन इनमें बहुत अधिक उतार-चढ़ाव होते हैं. डिबेंचर में निश्चित ब्याज भुगतान के माध्यम से स्थिरता मिलती है, लेकिन पूंजी में बढ़त की संभावना कम होती है.

अगर कोई व्यक्ति अपनी पूंजी बढ़ाना चाहता है और मार्केट जोखिम लेने के लिए तैयार है, तो शेयर में निवेश करना सही साबित हो सकता है. हालांकि, अगर कोई व्यक्ति स्थिर आय के साथ-साथ कम जोखिम लेना चाहता है, तो डिबेंचर अधिक उपयुक्त विकल्प हो सकते हैं. अक्सर अलग-अलग तरह के एसेट में निवेश करने की सलाह दी जाती है, इस तरह से शेयर और डिबेंचर दोनों में निवेश करके जोखिम और रिटर्न में संतुलन बनाया जा सकता है.

निष्कर्ष

शेयर और डिबेंचर, दोनों ही अलग-अलग खास विशेषताओं वाले फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट हैं. शेयर किसी कंपनी में स्वामित्व को दर्शाते हैं और इनमें मार्केट जोखिम शामिल होते हैं, जबकि डिबेंचर डेट को दर्शाते हैं और फिक्स्ड ब्याज के भुगतान की सुविधा देते हैं. निवेश से जुड़े सही निर्णय लेने के लिए शेयर और डिबेंचर के बीच अंतर को समझना बेहद ज़रूरी है. अपने पोर्टफोलियो में शेयर और डिबेंचर के बीच सही बैलेंस बनाने के लिए अपनी जोखिम लेने की क्षमता, निवेश के लक्ष्यों और मार्केट की स्थितियों का आकलन करें. निवेश का विकल्प चुनने से पहले हमेशा फाइनेंशियल सलाहकार से परामर्श करके यह सुनिश्चित कर लें वह विकल्प आपके फाइनेंशियल उद्देश्यों के अनुरूप है. इसके अलावा, आपको यह भी याद रखना चाहिए कि अपनी निवेश यात्रा शुरू करने के लिए डीमैट अकाउंट खोलना एक महत्वपूर्ण चरण है. इसलिए, अपनी निवेश की ज़रूरतों के हिसाब से प्रतिष्ठित ब्रोकिंग फर्म या फाइनेंशियल संस्थान के लिए रिसर्च करें.

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यह कंटेंट केवल शिक्षा के उद्देश्य से है.

सिक्योरिटीज़ में निवेश में जोखिम शामिल है, निवेशक को अपने सलाहकारों/परामर्शदाता से सलाह लेनी चाहिए ताकि निवेश की योग्यता और जोखिम निर्धारित किया जा सके.

सामान्य प्रश्न

क्या डिबेंचर शेयरों से जोखिमपूर्ण हैं?

नहीं, आमतौर पर डिबेंचर को उनके फिक्स्ड ब्याज भुगतान के कारण शेयरों की तुलना में कम जोखिम वाला माना जाता है और लिक्विडेशन के मामले में कंपनी एसेट पर उनका मज़बूत क्लेम होता है.

क्या डिबेंचर मतदान अधिकार प्रदान करते हैं?

आमतौर पर, डिबेंचर होल्डर के पास तब तक वोटिंग के अधिकार नहीं होते, जब तक कि डिबेंचर की शर्तों में विशेष रूप से उनका उल्लेख न किया गया हो.

क्या डिबेंचर को शेयरों में परिवर्तित किया जा सकता है?

हां, डिबेंचर को शेयरों में बदला जा सकता है. परिवर्तनीय डिबेंचर एक प्रकार की डेट सिक्योरिटी हैं जो धारक को एक निर्दिष्ट अवधि के बाद जारीकर्ता कंपनी के इक्विटी शेयरों में बदलने का विकल्प प्रदान करता है. अगर कंपनी की स्टॉक की कीमत बढ़ती है, तो यह कन्वर्ज़न फीचर इन्वेस्टर को संभावित उतार-चढ़ाव प्रदान करता है.

क्या शेयरधारकों को ब्याज का भुगतान मिलता है?

शेयरधारकों को ब्याज का भुगतान प्राप्त नहीं होता है. इसके बजाय, वे डिविडेंड और कैपिटल एप्रिसिएशन से लाभ उठाते हैं. ब्याज, पैसे उधार लेने के लिए किया गया भुगतान होता है, जबकि लाभांश शेयरधारकों को वितरित लाभ का हिस्सा होते हैं.

शेयर और डिबेंचर के बीच क्या समानता होती है?

शेयर और डिबेंचर, दोनों ही कंपनी में किए गए निवेश को दर्शाते हैं. शेयर, कंपनी में स्वामित्व की हिस्सेदारी दर्शाते हैं, जबकि डिबेंचर क्रेडिटरशिप दर्शाते हैं. दोनों ही कंपनी की पूंजी में योगदान देते हैं और निवेशकों के लिए रिटर्न जनरेट कर सकते हैं.

शेयरधारक और डिबेंचर धारक के बीच क्या अंतर हैं?

डिबेंचर होल्डर, क्रेडिटर की तरह होते हैं, जो किसी कंपनी को पैसे उधार देते हैं, जबकि शेयरहोल्डर वोटिंग अधिकारों वाले असल मालिक होते हैं.

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