डिलीवरी ट्रेडिंग क्या है?
डिलीवरी ट्रेडिंग फाइनेंशियल मार्केट में सिक्योरिटीज़ खरीदने और बेचने का एक पारंपरिक तरीका है. इसमें विक्रेता से खरीदार को स्टॉक, बॉन्ड या अन्य फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट के स्वामित्व का फिज़िकल ट्रांसफर होता है. डिलीवरी ट्रेडिंग में, खरीदार खरीदी गई सिक्योरिटीज़ को लंबी अवधि के लिए रखता है, आमतौर पर एक से अधिक ट्रेडिंग दिन के लिए, उन्हें निवेश के रूप में अपने पास रखने के इरादे से.
इंट्रा-डे ट्रेडिंग में पोज़ीशन एक ही ट्रेडिंग दिन में ओपन और क्लोज़ किए जाते हैं, जबकि डिलीवरी ट्रेडिंग में निवेशकों को अपने एसेट लंबे समय तक होल्ड करने की सुविधा मिलती है, जिससे लंबे समय में कीमत वृद्धि से लाभ मिलने की संभावना बढ़ती है.
डिलीवरी ट्रेडिंग कैसे काम करती है
बाय एंड होल्ड: डिलीवरी ट्रेडिंग में निवेशक ऐसा स्टॉक चुनता है जिसके बारे में उसका मानना है कि समय के साथ उसकी वैल्यू बढ़ेगी. इसके बाद वह मौजूदा मार्केट कीमत पर कुछ शेयर खरीदने का ऑर्डर देता है. ऑर्डर पूरा होते ही, शेयर निवेशक के डीमैट (डीमटीरियलाइज़्ड) अकाउंट में क्रेडिट हो जाते हैं, जो स्वामित्व को दर्शाता है.
सेटलमेंट: ऑर्डर पूरा होने के बाद, सेटलमेंट प्रोसेस शुरू हो जाती है. खरीदार का ब्रोकर एक्सचेंज को ट्रेड की सूचना देता है, और एक्सचेंज विक्रेता के डीमैट अकाउंट से खरीदार के डीमैट अकाउंट में शेयर ट्रांसफर करने की सुविधा प्रदान करती है. शेयरों का वास्तविक ट्रांसफर सेटलमेंट की तारीख पर होता है, जो आम तौर पर ट्रांज़ैक्शन से एक कार्य दिन बाद होती है (T+1).
स्वामित्व और होल्डिंग अवधि: निवेशक शेयरों का वैध स्वामी बन जाता है और जब तक चाहे तब तक उन्हें होल्ड कर सकता है. यहां लक्ष्य भविष्य में किसी भी संभावित कीमत वृद्धि से लाभ उठाना है.
पूंजी और ब्रोकरेज शुल्क: शेयर खरीदने की लागत को कवर करने के लिए निवेशक के पास पर्याप्त पूंजी होनी चाहिए. साथ ही, ट्रेड को पूरा करने के लिए ब्रोकरेज शुल्क और अन्य लागू शुल्क भी लिए जाते हैं.
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आइए इसे एक उदाहरण की मदद से समझें
रवि से मिलें; वे एक निवेशक हैं जो डिलीवरी ट्रेडिंग करना चाहते हैं. रवि का मानना है कि XYZ लिमिटेड नामक एक टेक्नोलॉजी कंपनी में अगले कुछ वर्षों में दमदार विकास की संभावनाएं हैं. वे प्रति शेयर ₹500 की वर्तमान मार्केट कीमत पर XYZ लिमिटेड के 100 शेयर खरीदने का निर्णय लेते हैं.
रवि XYZ लिमिटेड के 100 शेयर का ऑर्डर देते हैं. ऑर्डर पूरा किया जाता है और रवि के डीमैट अकाउंट में XYZ लिमिटेड के 100 शेयर क्रेडिट हो जाते हैं. सेटलमेंट की तारीख ट्रांज़ैक्शन से एक ट्रेडिंग दिन बाद की सेट है.
अगले दो वर्षों में XYZ लिमिटेड सफल प्रोडक्ट लॉन्च और अपनी सेवाओं की मांग में वृद्धि के कारण अच्छी-खासी वृद्धि करती है. XYZ लिमिटेड के स्टॉक की कीमत बढ़ते हुए प्रति शेयर ₹750 तक पहुंच जाती है.
लाभ के अवसर को पहचानकर रवि XYZ लिमिटेड के अपने शेयर बेचने का निर्णय लेते हैं. वे अपने ब्रोकर को बिक्री ऑर्डर देते हैं और शेयर उनके डीमैट अकाउंट से डेबिट हो जाते हैं. सेटलमेंट प्रोसेस शुरू की जाती है, और (T+1)वें दिन रवि को बिक्री से प्राप्त पैसे अपने ट्रेडिंग अकाउंट में मिल जाते हैं.
इस उदाहरण में, रवि ने एक लंबी अवधि के लिए XYZ लिमिटेड के शेयर खरीदकर और होल्ड करके डिलीवरी ट्रेडिंग की. शेयरों को होल्ड करने का उनका निर्णय फायदेमंद साबित हुआ क्योंकि कीमत में हुई अच्छी-खासी वृद्धि से उन्हें लाभ हुआ.
भारतीय स्टॉक मार्केट में डिलीवरी ट्रेडिंग के नियम
डिलीवरी ट्रेडिंग पर कुछ नियम और विनियम लागू हैं:
T+1 सेटलमेंट: भारत में डिलीवरी ट्रेडिंग के लिए सेटलमेंट साइकिल आमतौर पर T+1 है, यानी शेयर खरीदने पर आपको खरीद की तारीख से दो ट्रेडिंग दिनों (खरीद वाला दिन शामिल) के भीतर भुगतान करना होगा.
डीमैट अकाउंट: डिलीवरी ट्रेडिंग करने के लिए निवेशक के पास डीमैट अकाउंट होना आवश्यक है, जो बजाज फाइनेंशियल सिक्योरिटीज़ लिमिटेड (BFSL) जैसे किसी भी ब्रोकर के यहां खोला जा सकता है; इस अकाउंट में निवेशक के निवेश के इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड होते हैं.
टैक्स लाभ के लिए न्यूनतम होल्डिंग अवधि: लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स लाभ हेतु योग्य होने के लिए, निवेशकों को स्टॉक कम से कम एक वर्ष तक होल्ड करने होंगे.
डिलीवरी ट्रेडिंग और इंट्रा-डे ट्रेडिंग में अंतर
डिलीवरी ट्रेडिंग और इंट्रा-डे ट्रेडिंग में मुख्य अंतर वह समय सीमा है जिसके भीतर ट्रेड पूरे किए जाते हैं. डिलीवरी ट्रेडर न्यूनतम एक दिन के लिए शेयर खरीदते और होल्ड करते हैं, जबकि इंट्रा-डे ट्रेडर जिस दिन शेयर खरीदते हैं उसी दिन बेच भी देते हैं.
नीचे दी गई टेबल में डिलीवरी ट्रेडिंग और इंट्रा-डे ट्रेडिंग के प्रमुख अंतरों का सारांश दिया गया है:
विशेषता | डिलीवरी ट्रेडिंग | इंट्रा-डे ट्रेडिंग |
समय सीमा | न्यूनतम एक दिन | उसी दिन |
जोखिम | संभावित रूप से कम जोखिम | संभावित रूप से अधिक जोखिम |
ट्रांज़ैक्शन की लागत | अधिक ट्रांज़ैक्शन लागत | कम ट्रांज़ैक्शन लागत |
टैक्सेशन | इक्विटी डिलीवरी लाभ एक कैपिटल गेन इनकम है और इसी के अनुसार उस पर टैक्स लगता है. | इंट्रा-डे ट्रेडिंग से हुए लाभ बिज़नेस लाभ हैं. |
डिलीवरी ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान
लाभ:
- लंबे समय में वृद्धि की क्षमता: स्टॉक मार्केट की लंबे समय में वृद्धि की क्षमता से लाभ उठाना चाहने वाले निवेशकों के लिए डिलीवरी ट्रेडिंग आदर्श है. लंबे समय तक निवेश को होल्ड करने से निवेशक को मार्केट के छोटी अवधि के उतार-चढ़ावों से पार पाने की सुविधा मिलती है.
- डिविडेंड इनकम: लंबे समय तक स्टॉक होल्ड करने वाले निवेशकों को डिविडेंड मिलते हैं, जो शेयरहोल्डर को वितरित कंपनी के लाभों का एक हिस्सा होते हैं.
- कम दबाव: इंट्रा-डे ट्रेडिंग में फटाफट निर्णय आवश्यक होते हैं, जबकि डिलीवरी ट्रेडिंग आरामदायक धीमी गति से होती है, जिसमें निवेशक को निवेश निर्णय लेने से पहले पूरी रिसर्च करने का समय मिलता है.
जोखिम:
- मार्केट की अस्थिरता: हालांकि डिलीवरी ट्रेडिंग का उद्देश्य लंबे समय के लाभ हैं, पर स्टॉक मार्केट अस्थिर हो सकता है, जिससे कीमतों में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव आ सकते हैं और उनसे नुकसान हो सकता है.
- कंपनी की परफॉर्मेंस: डिलीवरी ट्रेड की सफलता कंपनी की संपूर्ण परफॉर्मेंस और मैनेजमेंट के निर्णयों पर निर्भर करती है, जो निवेशक के नियंत्रण से बाहर हैं.
निष्कर्ष
डिलीवरी ट्रेडिंग स्टॉक मार्केट में निवेश करने का एक बुनियादी तरीका है जिससे निवेशक अपनी होल्डिंग के बारे में लंबे समय की राय बना सकते हैं. यह पूंजी की कीमत वृद्धि और डिविडेंड इनकम की संभावना प्रदान करता है और फटाफट निर्णय लेने के दबाव से बचाता है. पर, इसके भी अपने कुछ जोखिम हैं, जैसे मार्केट की अस्थिरता और संभावित अवसर लागतें. निवेशकों के लिए डिलीवरी ट्रेडिंग और इंट्रा-डे ट्रेडिंग के अंतरों को समझना उनके फाइनेंशियल लक्ष्यों, जोखिम सहनशीलता और निवेश रणनीति से मेल खाने वाला तरीका चुनने के लिए आवश्यक है.
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