स्टॉक मार्केट में, सेटलमेंट का अर्थ सिक्योरिटीज़ के स्वामित्व को विक्रेता से खरीदार को ट्रांसफर करने की प्रक्रिया से है. दो प्रकार के सेटलमेंट हैं - रोलिंग सेटलमेंट और अकाउंट सेटलमेंट.
रोलिंग सेटलमेंट एक प्रोसेस है जहां T+1 दिन में ट्रेड सेटल किए जाते हैं. इस प्रोसेस में, सेटलमेंट की अवधि हर दिन आगे बढ़ती रहती है. उदाहरण के लिए, अगर रोलिंग सेटलमेंट अवधि T+2 है, तो सेटलमेंट अवधि के पहले दिन के अंत पर, अवधि T+1 होगी, और दुसरे दिन के अंत पर, अवधि T+2 होगी.
रोलिंग सेटलमेंट का अर्थ
रोलिंग सेटलमेंट का मतलब है कि किसी भी ट्रांज़ैक्शन को एक कार्य दिवस में सेटल किया जाएगा. फाइनेंशियल मार्केट में ट्रेडर्स T+1 दिनों में ट्रेड सेटल करने के इस तरीके पर निर्भर करते हैं. उदाहरण के लिए, अगर आप आज सिक्योरिटी खरीदते हैं, तो यह आपको ट्रांसफर कर दिया जाएगा और ट्रांज़ैक्शन अगले बिज़नेस दिन तक सेटल कर दिया जाएगा. अगर किसी सिक्योरिटी को सोमवार को खरीदा जाता है, तो इसे मंगलवार तक सेटल किया जाएगा. अगर आप शुक्रवार को खरीदारी करते हैं, तो इसे सोमवार को बंद कर दिया जाएगा. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि वीकेंड, बैंक और एक्सचेंज हॉलिडे को कार्य दिवस नहीं माना जाता है.
इक्विटी मार्केट में ट्रेडर्स के लिए, सेटलमेंट का दिन बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह सीधे डिविडेंड भुगतान को प्रभावित करता है.
BSE पर ट्रेड सेटलमेंट की प्रक्रिया क्या है?
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) पर ट्रेड सेटलमेंट प्रोसेस रोलिंग सेटलमेंट सिस्टम पर आधारित है. BSE की सेटलमेंट अवधि T+1 है, जिसका मतलब है कि ट्रेड की तारीख के एक कार्य दिवस के भीतर ट्रेड्स सेटल किए जाते हैं. सेटलमेंट साइकिल को अलग-अलग चरणों में विभाजित किया गया है. इनमें ट्रेड की तारीख, पे-इन और पे-आउट शामिल हैं. पे-इन चरण के दौरान, खरीदारों को उनकी खरीदी गई सिक्योरिटीज़ के लिए फंड का भुगतान करना होगा और पे-आउट चरण के दौरान, विक्रेताओं को बेची गई सिक्योरिटीज़ के लिए फंड प्राप्त होगा.
NSE में ट्रेड सेटलमेंट क्या है?
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) में भी BSE के जैसी ही ट्रेड सेटलमेंट प्रोसेस है. NSE की सेटलमेंट अवधि भी T+1 है. NSE में सेटलमेंट साइकिल को पांच चरणों में विभाजित किया जाता है - ट्रेड की तारीख, ट्रेड कन्फर्मेशन, पे-इन, पे-आउट और क्लोज़आउट. पे-इन चरण के दौरान, खरीदारों को उनकी खरीदी गई सिक्योरिटीज़ के लिए फंड का भुगतान करना होगा, और पे-आउट चरण के दौरान, विक्रेताओं को बेची गई सिक्योरिटीज़ के लिए फंड प्राप्त होगा.
NSE पर सेटलमेंट साइकिल
कृपया NSE पर सेटलमेंट साइकिल के बारे में जानने के लिए नीचे दी गई टेबल देखें:
गतिविधि
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कार्य दिवसों की संख्या
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रोलिंग सेटलमेंट ट्रेडिंग
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T
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क्लीयरिंग प्रोसेस, जिसमें डिलीवरी प्रोसेसिंग और कस्टोडियल कन्फर्मेशन शामिल हैं
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T+1
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सेटलमेंट गतिविधियां, जिसमें सिक्योरिटीज़ व फंड और वैल्यूएशन डेबिट का पे-इन और पे-आउट शामिल है
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T+1
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पोस्ट-सेटलमेंट नीलामी
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T+1
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नीलामी का सेटलमेंट
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T+2
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टेबल में 'T' ट्रांज़ैक्शन के दिन या ट्रेडिंग दिन को दर्शाता है.
सेटलमेंट उल्लंघन
ट्रेड सेटलमेंट प्रोसेस में, विभिन्न कारणों से सेटलमेंट का उल्लंघन हो सकता है, जैसे शॉर्ट सेलिंग, खराब डिलीवरी और नीलामी सेटलमेंट. शॉर्ट सेल उल्लंघन तब होता है जब विक्रेता उन सिक्योरिटीज़ को बेचता है, जिनका उसके पास स्वामित्व नहीं है या जिन्हें बेचने के लिए उसने उधार नहीं लिया है. डिलीवरी का खराब उल्लंघन तब होता है जब डिलीवर की गई सिक्योरिटीज़ विक्रेता की डिलीवरी के दायित्वों से मेल नहीं खाती हैं और निलामी सेटलमेंट तब होता है, जब ट्रेड को नियमित सेटलमेंट प्रोसेस में सेटल नहीं किया जा सकता है और ट्रेड सेटल करने के लिए नीलामी की जाती है.
निष्कर्ष
ट्रेड सेटलमेंट स्टॉक मार्केट में ट्रेडिंग प्रोसेस का एक अभिन्न हिस्सा है. इसमें खरीदार और विक्रेता के बीच कैश और सिक्योरिटीज़ का लेन-देन शामिल है. सेटलमेंट प्रोसेस को विभिन्न चरणों में बांटा जाता है, जैसे कि ट्रेड की तारीख, पे-इन और पे-आउट.
जबकि ट्रेड सेटलमेंट एक जटिल प्रक्रिया है, वहीं यह स्टॉक मार्केट की रीढ़ की हड्डी भी है, और इसके बिना, पूरी ट्रेडिंग प्रोसेस अस्तव्यस्त हो जाएगी.
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