करेंसी फ्यूचर्स
फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट, डेरिवेटिव का एक प्रकार है, जिन्हें जोखिम कम करने (हेजिंग) और लाभ का अंदाज़ा लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. ये विभिन्न एसेट के लिए उपलब्ध हैं, जैसे स्टॉक, इंडाइस, कमोडिटी और करेंसी पेयर. इस चर्चा में, हम करेंसी फ्यूचर्स के बारे में बात करेंगे और यह समझेंगे कि करेंसी से जुड़े जोखिमों से बचने के लिए इनका इस्तेमाल कैसे किया जाता है और ट्रेडर अनुमानित लाभ कमाने के लिए इनका कैसे इस्तेमाल करते हैं.
करेंसी फ्यूचर्स क्या होते हैं
करेंसी फ्यूचर्स, एक्सचेंज पर ट्रेड किए जाने वाले फाइनेंशियल कॉन्ट्रैक्ट होते हैं. ये भविष्य की तारीख पर, पहले से तय की गई कीमत पर करेंसी की निश्चित राशि क्रेता को खरीदने या विक्रेता को बेचने के लिए बाध्य करते हैं.
आइए एक उदाहरण से समझते हैं.
द इवेंट
- मान लेते हैं कि आप भारत में कपड़ों का बिज़नेस करते हैं, जिसके लिए आपको अमेरिका से कॉटन आयात करना है.
- आपको अपने US सप्लायर को तीन महीनों में $10,000 का भुगतान करना होगा.
- आपको इस बात की चिंता है कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया कमज़ोर हो सकता है, जिसके चलते आपके लिए भुगतान करना और भी महंगा पड़ेगा.
द हेज
- अपने आप को इस जोखिम से सुरक्षित रखने के लिए, आप करेंसी फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट खरीदने का निर्णय लेते हैं.
- वर्तमान एक्सचेंज दर ₹75 प्रति US डॉलर (मानी गई) है.
- आप तीन महीनों के बाद प्रति डॉलर ₹75 के हिसाब से ₹10,000 खरीदने के लिए करेंसी फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट लेते हैं.
परिणाम
- तीन महीनों के बाद, एक्सचेंज की दर प्रति डॉलर ₹80 हो गई.
- हालांकि, आप अभी भी सहमति के अनुसार प्रति डॉलर ₹75 के हिसाब से डॉलर खरीद सकते हैं.
- इस तरह, आपने कमजोर होते रुपए के जोखिम से खुद को सुरक्षित रखने के लिए करेंसी फ्यूचर्स का इस्तेमाल किया है.
करेंसी फ्यूचर्स की विशेषताएं क्या हैं
आइए कुछ प्रमुख विशेषताओं पर एक नज़र डालें:
स्टैंडर्ड कॉन्ट्रैक्ट साइज़
- करेंसी फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में स्टैंडर्ड कॉन्ट्रैक्ट साइज़ होते हैं.
- ये ट्रेड की जा रही बेस करेंसी की राशि तय करते हैं.
- जैसे,
- USD/INR के लिए स्टैंडर्ड करेंसी फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट का कॉन्ट्रैक्ट साइज़ 1,000 USD पर आधारित होता है
- USD/INR के लिए स्टैंडर्ड करेंसी फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट का कॉन्ट्रैक्ट साइज़ 1,000 USD पर आधारित होता है
समाप्त होने की तय तारीख
- प्रत्येक करेंसी फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट की एक निश्चित समाप्ति तारीख होती है, जो आमतौर पर महीने के किसी एक दिन पर तय होती है.
- समाप्ति तारीख के बाद, कॉन्ट्रैक्ट को या तो:
- फिज़िकल डिलीवरी या
- कैश सेटलमेंट
सेंट्रलाइज्ड ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म
- भारत में, करेंसी फ्यूचर्स को सेंट्रलाइज्ड एक्सचेंज पर ट्रेड किया जाता है, जैसे:
- नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) या
- मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX).
- ये एक्सचेंज, ट्रेड करने के लिए एक रेगुलेटेड मार्केट ऑफर करते हैं जहां खरीदार और विक्रेता करेंसी फ्यूचर्स के कॉन्ट्रैक्ट में पूरी पारदर्शिता और कुशलता से व्यापार कर सकते हैं.
ट्रांसपेरेंट कीमत
- करेंसी फ्यूचर्स की कीमतें सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं और ट्रांसपेरेंट हैं.
- मार्केट के सभी ट्रेडर:
- रियल-टाइम कोटेशन देख सकते हैं और
- मार्केट द्वारा तय कीमतों पर ट्रेड कर सकते हैं
लिक्विडिटी
- करेंसी फ्यूचर्स के मार्केट में बहुत अधिक लिक्विडिटी होती है.
- बड़े वॉल्यूम में ट्रेडिंग होती है और खरीदने या बेचने की कीमतों पर कड़ी प्रतिस्पर्धी होती है.
- इस लिक्विडिटी से ट्रेडर, मार्केट की कीमतों पर कोई अहम असर डाले बिना ट्रेड पोजीशन की आसानी से खरीदी और बिक्री कर सकते हैं.
करेंसी फ्यूचर्स में मार्जिन से जुड़ी ज़रूरतें क्या होती हैं
फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में ट्रेड करने के लिए, ट्रेडर्स के लिए:
- शुरुआती मार्जिन डिपॉज़िट करना और
- अपने ब्रोकर के साथ मेंटेनेंस मार्जिन बनाए रखना ज़रूरी होता है
यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर किसी ट्रेडर के अकाउंट का बैलेंस मेंटेनेंस मार्जिन लेवल से कम होता है, तो उन्हें ज़रूरी लेवल पर वापस लाने के लिए और फंड डिपॉज़िट करना होता है.
आइए इसे एक उदाहरण के ज़रिए अच्छे से समझते हैं.
- कोई ट्रेडर नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) पर USD/INR के लिए करेंसी फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट खरीदना चाहता है.
- NSE को कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू के 4% (माना गया) के शुरुआती मार्जिन की ज़रूरत होती है.
- ट्रेडर का कॉन्ट्रैक्ट साइज़ $1,000 है और एक्सचेंज की मौजूदा दर प्रति डॉलर ₹75 है.
- ऐसे मामले में, कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू ₹75,000 होगी.
- इसलिए, शुरुआती ज़रूरी मार्जिन ₹75,000 का 4% होगा, जो ₹3,000 होता है.
इसके अलावा, ट्रेडर को मेंटेनेंस मार्जिन बनाए रखना होता है, जो आमतौर पर शुरुआती मार्जिन से कम होता है. चलिए मान लेते हैं कि मेंटेनेंस मार्जिन, कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू का 2% है, तो इस मामले में वह ₹1,500 होगा.
- अगर ट्रेडर का अकाउंट बैलेंस ₹1,500 से कम होता है, तो उन्हें उस कमी को पूरा करने के लिए अधिक फंड डिपॉज़िट करना होगा.
भारत में करेंसी फ्यूचर्स मार्केट को कौन नियंत्रित करता है
भारत में करेंसी फ्यूचर्स मार्केट को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा नियंत्रित किया जाता है. SEBI, विनियामक प्राधिकरण है, जो कि भारत में प्रतिभूति (सिक्योरिटीज़) बाजार को प्रबंधित और नियंत्रित करने के लिए ज़िम्मेदार है, जिसमें नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) और मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) जैसे एक्सचेंज पर ट्रेड किए जाने वाले करेंसी डेरिवेटिव भी शामिल हैं.
लाभ का अनुमान लगाने के लिए करेंसी फ्यूचर्स का उपयोग कैसे करें
आइए एक काल्पनिक उदाहरण से समझें:
मान लीजिए आप भारत में एक व्यक्तिगत ट्रेडर हैं और आप वैश्विक आर्थिक घटनाओं पर करीबी नज़र रखते हैं; फिलहाल आपका मानना है कि अर्थव्यवस्था में सकारात्मक संकेतों के कारण निकट भविष्य में US डॉलर (USD) के विरुद्ध भारतीय रुपया (INR) मज़बूत होगा.
आप USD/INR के करेंसी फ्यूचर्स यानी वायदा कॉन्ट्रैक्ट खरीदकर इस विश्वास पर बाज़ी लगाने का निर्णय लेते हैं. मान लें कि वर्तमान एक्सचेंज दर ₹75 प्रति US डॉलर है, और आप मानते हैं कि अगले महीने रुपया मज़बूत होकर ₹70 प्रति डॉलर तक पहुंच जाएगा.
आप ₹75 प्रति डॉलर की वर्तमान एक्सचेंज दर पर USD 10,000 बेचने का करेंसी फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट लेते हैं जिसकी एक्सपायरी एक महीने में है. कॉन्ट्रैक्ट का साइज़ USD 10,000. है
मान लें कि आपकी भविष्यवाणी सही निकली और एक महीने बाद एक्सचेंज दर वास्तव में मज़बूत होकर ₹70 प्रति डॉलर तक पहुंच गई, अब आप मार्केट से उतनी ही करेंसी को स्पॉट यानी हाज़िर दर पर वापस खरीदकर अपनी पोजीशन क्लोज़ करने का निर्णय लेते हैं.
आपने कॉन्ट्रैक्ट ₹75 प्रति डॉलर पर लिया था, और उसे ₹70 प्रति डॉलर पर क्लोज़ किया, इसलिए आपने प्रति डॉलर ₹5 का लाभ कमाया.
निष्कर्ष
करेंसी फ्यूचर्स, ट्रेड करने योग्य फाइनेंशियल कॉन्ट्रैक्ट होते हैं, जिनकी मदद से लोग और बिज़नेस, करेंसी से जुड़े जोखिम को कम करने या करेंसी में होने वाले उतार-चढ़ाव का अनुमान लगा पाते हैं. ये काफी ट्रांसपैरेंट और लिक्विड होते हैं, साथ ही इनके समाप्त होने की एक निश्चित तारीख होती है. फ्यूचर्स ट्रेडिंग करने के लिए, ट्रेडर्स को शुरुआती मार्जिन डिपॉज़िट करना होता है और उसके बाद मेंटेनेंस मार्जिन को बनाए रखना होता है. भारत में, करेंसी फ्यूचर्स को NSE जैसे सेंट्रलाइज्ड एक्सचेंज पर ट्रेड किया जाता है और SEBI द्वारा नियंत्रित किया जाता है.