अक्रूअल अकाउंटिंग क्या है और यह कैसे काम करती है

अक्रूअल अकाउंटिंग: कैश फ्लो के बजाय अर्जित/खर्च किए जाने पर आय और खर्चों को रिकॉर्ड करना
डॉव सिद्धांत के बारे में जानकारी: यह क्या है और यह कैसे काम करता है
3 मिनट
02-April-2024

अक्रूअल अकाउंटिंग वित्तीय रिपोर्टिंग का बुनियादी सिद्धांत है. इसका उद्देश्य खर्च के समय, आय और खर्चों का मिलान करना है, चाहे कैश का लेन-देन कभी भी किया गया हो. यह तरीका एक खास अवधि में कंपनी की वित्तीय स्थिति की अधिक सटीक जानकारी देती है. आइए, हम कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों के बारे में बारीकी से जानें:

सिद्धांत

अर्थ

आय की पहचान कब करें?

आय की पहचान तब करें, जब अर्जित हो, न कि तब जब भुगतान प्राप्त होता है

खर्चों की पहचान कब करें?

खर्चों की पहचान तब करें, जब वे किए जाते हैं, न कि तब जब कैश भुगतान किया जाता है.

बिज़नेस की अवधि का विभाजन

  • इससे संबंधित वर्तमान अवधारणा के अनुसार, यह माना जाता है कि कोई भी बिज़नेस अनिश्चित समय तक चलता है.
  • समय-समय पर बिज़नेस की परफॉर्मेंस का मूल्यांकन करने के लिए, इसकी अवधि को एक तय अकाउंटिंग अवधि (3 महीने, 12 महीने आदि) में बांट दिया जाता है

उपयुक्त मैचिंग

किसी अकाउंटिंग अवधि में हुए खर्चों को, उन खर्चों की मदद से होने वाली आय से मैच होना चाहिए.

अपने बिज़नेस में अक्रूअल अकाउंटिंग का उपयोग क्यों करें

सटीक वित्तीय रिपोर्टिंग

  • अकाउंट बुक एक्रूअल की अवधारणा पर आधारित होते हैं, जो संबंधित अवधि की आय और खर्चों को मैच करके कंपनी की वित्तीय स्थिति और परफॉर्मेंस की अधिक सटीक जानकारी देती है.

भविष्य के अनुमानों में मदद करती है

  • अक्रूअल अकाउंटिंग का उपयोग करके, आप दोनों को समझ सकते हैं:
    • उन पर क्या बकाया है और
    • भविष्य में उनको क्या अर्जित हो सकता है
  • इससे भविष्य की वित्तीय रिपोर्ट की प्रभावी तरीके से तैयारी करने और वित्तीय रुझानों को सटीक तरीके से पहचानने में मदद मिलती है.

अनुपालन और पारदर्शिता

  • अक्रूअल अकाउंटिंग, सामान्य तौर पर स्वीकृत अकाउंटिंग सिद्धांत (GAAP) का अनुपालन भी सुनिश्चित करता है.
  • यह तीन बुनियादी अकाउंटिंग धारणाओं में से एक है और कानूनी रूप से अनुपालन करने वाली और स्वीकृत अकाउंट बुक तैयार करने में मदद करती है.

अपने बिज़नेस में अक्रूअल अकाउंटिंग का उपयोग कैसे करें

अक्रूअल अकाउंटिंग में आय और खर्च को तब रिकॉर्ड किया जाता है, जब वे होते हैं, न कि तब जब पैसे ट्रांसफर होते हैं. आइए, हम आसान चरणों में जानते हैं कि अक्रूअल अकाउंटिंग का उपयोग कैसे करें:

चरण I: आय के स्रोत की पहचान करें

पहला चरण आपके बिज़नेस से होने वाली आय के विभिन्न स्रोतों की पहचान करना है. इसमें आमतौर पर शामिल ये चीज़ें शामिल हैं:

  • सामान की बिक्री
  • दी जाने वाली सेवाएं
  • ब्याज से होने वाली आय
  • रॉयल्टी आदि.

चरण II: रिकग्निशन क्राइटीरिया का पालन करें

सिर्फ तभी आय की पहचान करें, जब नीचे दिए गए दोनों मानदंड पूरे होते हों:

अर्जित की गई आय

वास्तविक आय

  • आय (रेवेन्यू) को अर्जित तब माना जाता है, जब बिज़नेस ने ग्राहक के प्रति अपनी दायित्वों को काफी हद तक पूरा कर लिया हो.
  • यह आमतौर पर तब होता है जब माल डिलीवर किया जाता है या सेवाएं दे दी जाती हैं.
  • आय को प्रत्यक्ष-योग्य तब माना जाता है जब बिज़नेस की भुगतान प्राप्त होने की उचित उम्मीद हो.
  • यह मानदंड यह सुनिश्चित करता है कि आय की पहचान तब तक न की जाए जब तक इसे प्राप्त करना पूरी तरह निश्चित न हो जाए.

चरण III: खर्चों की पहचान करें

आय कमाते और बिज़नेस चलाते समय, बिज़नेस कई तरह के खर्च उठाता है. इन खर्चों में आमतौर पर शामिल हैं:

  • बेचे गए सामान की लागत (COGS)
  • वेतन
  • किराया
  • उपयोगिताएं
  • मूल्यह्रास, आदि.

चरण IV: रिकग्निशन क्राइटीरिया का पालन करें

खर्चों की पहचान तब करें, जब सामान या सेवाएं आय बनाने की प्रक्रिया में उपभोग या उपयोग की जाती हैं. यह रिकग्निशन क्राइटीरिया अक्रूअल की अवधारणा पर आधारित है और सुनिश्चित करता है कि खर्चों को सही अकाउंटिंग अवधि में सही आय के साथ मैच किया जाए.

चरण V: आय और खर्चों को रिकॉर्ड करें

आय और खर्चों की सही पहचान करने के बाद, आइए उन्हें डबल-एंट्री अकाउंटिंग सिद्धांत के आधार पर रिकॉर्ड करें. यानी, रिकॉर्ड किए गए हर ट्रांज़ैक्शन पर दो तरह का असर होगा (डेबिट और क्रेडिट), जैसे नीचे टेबल में दिखाया गया है:

आय का रिकॉर्ड

खर्चों का रिकॉर्ड

  • आय में बढ़ोतरी के लिए एक क्रेडिट एंट्री करें.
  • इसी तरह, एसेट अकाउंट में बढ़ोतरी दर्ज करने के लिए डेबिट एंट्री करें (जैसे, बैंक, कैश, डेटर)
  • खर्चों में बढ़ोतरी के लिए एक डेबिट एंट्री करें.
  • ऐसे ही, एसेट अकाउंट (जैसे बैंक, कैश, डेटर) में कमी को रिकॉर्ड करने के लिए एक क्रेडिट एंट्री करें

कुछ सामान्य अक्रूअल जर्नल एंट्री

अक्रूअल जर्नल एंट्री का उपयोग, अक्रूअल अकाउंटिंग के सिद्धांतों के आधार पर, आय और खर्चों को रिकॉर्ड करने के लिए किया जाता है. आइए कुछ सामान्य एंट्री जानें:

अर्जित आय (अक्रूड रेवेन्यू)

  • मान लीजिए कि एक कंसल्टिंग कंपनी, दिसंबर में M/s ABC Ltd को सेवाएं प्रदान करती है, लेकिन बिल जनवरी में जमा करेगी.
  • कंपनी दिसंबर में अर्जित आय को रिकॉर्ड करने के लिए इन चरणों का पालन करेगी:
    • M/s ABC Ltd के अकाउंट को डेबिट करें (बढ़ाएं) और
    • "सेल्स" अकाउंट को क्रेडिट करें (बढ़ाएं)

अर्जित खर्च (अक्रूड एक्सपेंस)

  • मान लीजिए कि एक कंपनी को अक्टूबर में M/s XYZ Ltd से माल प्राप्त होता है, लेकिन वे बिल का भुगतान दिसंबर में करेंगे.
  • कंपनी अक्टूबर में हुए खर्चों को रिकॉर्ड करने के लिए इन चरणों का पालन करती है:
    • "परचेज़" अकाउंट को डेबिट करें (बढ़ाएं) और
    • M/s XYZ Ltd अकाउंट को क्रेडिट करें (बढ़ाएं)

विलंबित आय (डेफर्ड रेवेन्यू)

  • मान लीजिए कि कोई ग्राहक एक साल के सब्सक्रिप्शन के लिए पहले से ही दिसंबर में भुगतान करता है, लेकिन सेवाएं अगले साल में मासिक रूप से दी जाएंगी.
  • कंपनी दिसंबर में प्राप्त भुगतान को ऐसे रिकॉर्ड करेगी:
    • रेवेन्यू अकाउंट (नकद या बैंक) डेबिट करें (बढ़ाएं) और
    • किसी लायबिलिटी अकाउंट को क्रेडिट करें (बढ़ाएं), जैसे कि अनअर्न्ड रेवेन्यू
  • जैसे-जैसे सेवाएं हर महीने दी जाती हैं, वैसे-वैसे देयता कम होती जाती है.
  • आय की पहचान समय-समय पर करने के लिए ये चरण अपनाए जाते हैं:
    • अनअर्न्ड रेवेन्यू अकाउंट को डेबिट करें (बढ़ाएं) और
    • रेवेन्यू अकाउंट को क्रेडिट करें (बढ़ाएं)

विलंबित खर्च (डेफर्ड एक्सपेंस)

  • मान लीजिए कि कोई बिज़नेस आगामी साल की बीमा कवरेज के लिए दिसंबर में भुगतान करता है, लेकिन कवरेज अगले साल से शुरू होगी.
  • कंपनी दिसंबर में किए गए भुगतान को इस प्रकार रिकॉर्ड करेगी:
    • किसी एक्सपेंस अकाउंट को डेबिट करें (बढ़ाएं) जैसे प्रीपेड इंश्योरेंस और
    • कैश अकाउंट को क्रेडिट करें (घटाएं)
  • जैसे-जैसे महीने बीतते हैं, प्रीपेड इंश्योरेंस अकाउंट में खर्च जोड़ने के लिए इन चरणों का पालन किया जाता है:
    • किसी इंश्योरेंस एक्सपेंस अकाउंट को डेबिट करें (बढ़ाएं) और
    • प्रीपेड इंश्योरेंस अकाउंट को क्रेडिट करें (घटाएं)

निष्कर्ष

अक्रूअल अकाउंटिंग से बिज़नेस को कई लाभ मिलते हैं. यह आय और खर्च को सही समय पर मिलाकर ज़्यादा सटीक वित्तीय रिपोर्टिंग में मदद करता है. इससे यह तय करना आसान हो जाता है कि पैसे कहां खर्च करें और कंपनी को कैसे बढ़ाएं.

अकाउंटिंग की अक्रूअल अवधारणा के अनुसार खर्चों और आय को उस अवधि में पहचाना जाना चाहिए, जब वे होते हैं न कि तब जब असल में नकद भुगतान दिया या लिया जाता है. अक्रूअल अवधारणा का पालन करके अकाउंट्स तैयार करने पर, आप न सिर्फ GAAP का अनुपालन करते हैं, बल्कि बिज़नेस के भविष्य के लिए सूचित अनुमान भी लगा पाते हैं.

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सामान्य प्रश्न

डॉव सिद्धांत का मुख्य उद्देश्य क्या है?

डॉव सिद्धांत मुख्य रूप से अलग-अलग तरह के ट्रेंड्स और चरणों की पहचान करके बाज़ार में कीमत में हुई हलचल को समझने में व्यापारियों और निवेशकों की मदद करता है.

डॉव सिद्धांत के अनुसार, बाज़ार में कितने ट्रेंड होते हैं?

डॉव सिद्धांत के अनुसार बाज़ार में तीन प्रकार के ट्रेंड होते हैं - प्राथमिक ट्रेंड, द्वितीयक ट्रेंड और माइनर ट्रेंड.

हम तकनीकी विश्लेषण में डॉव सिद्धांत का उपयोग कैसे करें?

तकनीकी विश्लेषण में डॉव सिद्धांत के मूल्यों का उपयोग करने के लिए, आप बाज़ार के प्राथमिक और द्वितीयक ट्रेंड्स की पहचान कर सकते हैं और वॉल्यूम के विश्लेषण से उन्हें कन्फर्म कर सकते हैं. अल्पकालिक ट्रेड के लिए, आप बाज़ार के माइनर ट्रेंड का अध्ययन और उपयोग भी कर सकते हैं.

क्या डॉव सिद्धांत में ट्रेडिंग वॉल्यूम को भी देखा जाता है?

हां, डॉव सिद्धांत ट्रेडिंग वॉल्यूम की अहमियत पर ज़ोर देता है. कीमत के ट्रेंड तभी कन्फर्म होते हैं जब वे आवश्यक वॉल्यूम ट्रेंड और संख्याओं द्वारा समर्थित हों.

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